Kumbh Mela Haridwar 2021
इस वार Kumbh Mela Haridwar 2021 का योग हरिद्वार में बना है !
जो की इस साल आकर्षण का केंद्र है !
जानिए हरिद्वार के बारे में
हरिद्वार एक ऐसा पावन धर्म स्थली है जहाँ का कण कण में गंगा मईया वास करती है !
लोग जहाँ पर आकर गंगा मईया में स्नान करकर अपनी आत्मा को पवित्र करते है और मोक्ष प्राप्त करते है !
हिन्दू धर्म के अनुसार जब किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो उसकी अस्थिया गंगा में विसर्जित की जाती है
जिससे उस मृत व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है !
कहा जाता है की जब भी किसी कन्या का विवाह रखा जाता है तो उसे भी शुद्ध करने के लिए विवाह से पहले गंगा में स्नान कराया जाता है !
और इसी तरह हजारो की संख्या में लोग हरिद्वार में कुम्भ का स्नान करने आते है !
कुम्भ का स्नान करने से लोग पाप मुक्त होते है !
NOTE: हरिद्वार में कुम्भ का स्नान करते समय हमें कुछ सावधानिया रखनी पड़ती है !क्युकी गंगा का वहाव कई बार बहुत तेज भी होता है !
Kumbh Mela Haridwar
Kumbh Mela Haridwar 2021 का भव्य आयोजन 14 जनवरी को यानी की मकर संक्रांति से शुरू हो चुका है
और अप्रैल 2021 तक जारी रहेगा !
कुंभ स्नान का महत्व
हिन्दू धर्म की पुराणिक मान्यताओ में कुम्भ मेले में पवित्र नदी में स्नान करने से इंसान के सारे पाप और रोगो से मुक्ति मिल जाती है !
और इंसान को मोक्ष मिलता है !
इस बार कुम्भ मेले में जाने वाले लोगो को कोरोना नियमो का पूरा ध्यान रखना होगा !
Kumbh Mela Haridwar 2021 अधिकारी कोण है ?
दीपक रावत हरिद्वार के मेले में अधिकारी है !
Haridwar Kumbh Mela 2021 Registration Online
कुम्भ का मेला क्या है ?
हमारी धर्म ग्रंथो के अनुसार कुम्भ मेला 750 साल पुराना है !
कहा जाता है की कुम्भ की शुरुआत शंकराचार्य से शुरू हो गयी थी !
लेकिन कुछ कथाओ के अनुसार इसकी शुरुआत समुन्द्र मंथन के आदिकाल से शुरू हो गयी थी !
हरिद्वार , प्रयागराज , नासिक , उज्जैन इन जगहों में समुन्द्र मंथन के दौरान अमृत कलश गिरा था !
इन सभी स्थानों में स्नान करने से इंसान को मोक्ष की प्राप्ति होती है !
कुम्भ मेला प्रत्येक स्थान पर हर वर्ष लगता है लेकिन महाकुम्भ मेला 12 वर्ष बाद और 6 वर्ष बाद अर्धकुंभ लगता है !
महाकुम्भ में 12 वर्ष बाद क्यों मनाया जाता है ?
महाकुम्भ मेला 12 वर्ष बाद इसलिए मनाया जाता है
क्योकि इनका एक विशेष कारण है !
जब जब माघ अमावस्या के दिन सूर्य और चन्द्रमा मकर राशि में होते हैं
और गुरू मेष राशि में होता है ! तब ही कुम्भ और अर्द्धकुंभ मनाया जाता है !
कुम्भ में ग्रहो की महत्वपूर्णता
कहा जाता है की कुम्भ में नौ ग्रहो में से सूर्य, चंद्र और गुरु तथा शनि की महत्वपूर्ण भूमिका होती है !
इसलिए इन्ही के आधार पर कुम्भ का आयोजन होता है !
अमृत की रक्षा के लिए चन्द्रमा ने अमृत को बहाने से बचाया
और गुरु ने कलश को छुपा के रखा और सूर्य देव ने कलश को भुट्ने से बचाया
तथा शनि ने इन्द्र के प्रकोप से बचाया
इसलिए जब ये चारो ग्रह एक साथ मिलते है तब कुम्भ का आयोजन होता है !
अर्ध कुम्भ क्या होता है?
अर्ध कुम्भ का अर्थ है आधा होता है !
हरिद्वार और प्रयाग में दो कुंभ पर्वों के बीच 6 वर्ष के अन्तरकाल में अर्ध कुम्भ का आयोजन होता है !
हरिद्वार में शुरू होने वाला कुम्भ 3 साल के अन्तरकाल में होता है !
कुम्भ मेला हरिद्वार के बाद प्रयागराज नासिक और उज्जैन में होता है !
हरिद्वार और प्रयागराज में होने वाले कुम्भ मेले में और प्रयागराज एवं नासिक में होने वाले कुम्भ मेले में 3 सालो का अंतर् होता है !
कुंभ मेला क्यों इतना महत्वपूर्ण है ?
कुम्भ मेला इसलिए इतना महत्वपूर्ण है यह दो शब्दों से बना है ,
कुम्भ मतलब अमृत का घड़ा और मेला मतलब यहाँ पर काफी लोग एक जगह इकठे होकर आनंदित प्राप्त करते है !
पुराणों के अनुसार समुन्द्र मंथन के दौरान जब राक्षशो से देवता भाग रहे थे
तब अमृत की कुछ बुँदे पृथ्वी की इन चार स्थानों पर गिरी !
यह चार स्थान इस प्रकार है
हरिद्वार , प्रयागराज , नासिक और उज्जैन !
अमृत की कुछ बुँदे हरिद्वार में 6 दिन गिरी , प्रयागराज में 9 दिन और नासिक, उज्जैन में 12 दिन !
इसीलिए कुम्भ मेला नासिक और उज्जैन में एक ही साल या 6 महीने के अन्तरकाल पर मनाया जाता है !
हरिद्वार और प्रयागराज में 4 या 3 साल के अन्तरकाल में मनाया जाता है !
मनुष्यो का एक दिन देवताओ के ग्रह पर एक साल के बराबर होता है !
इस लिए देवताओ का 12 दिन मनुष्यो का 12 साल के बराबर होता है !
कुम्भ मेला इसलिए बारह साल में एक बार चार स्थानों में मनाया जाता है !
हमारे बुद्ध जीवियो ने यह कहा था की बारह साल में मौसमी और पार्थिव स्थिति इस तरह बन जाती है
की चार नदियों का पानी अमृत बन जाता है !
इसलिए इस समय गंगा और अन्य नदिया में डुबकी लगाने से मनुष्यो को सभी पापो से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति मिलती है !
यह चार नदिया है
1)गंगा , यमुना और सरस्वती का त्रिवेणी संगम
2) हरिद्वार की माँ गंगा
3) नाशिक की गोदावरी नदी
4) उज्जैन की शिप्रा नदी
शरीर की शुद्धि +मानसिक शुद्धि + पूजा में शुद्धि = आत्मा की शुद्धि
ऋषि मुनि करहते है पृथ्वी से स्वर्ग का रास्ता कुम्भ में खुल जाता है
और शुद्ध आत्मा स्वर्ग की प्राप्ति बहुत आसानी से कर सकती है !
12 साल बाद ही कुम्भ मेला क्यों लगता है?
हमारे सौर मंडल का सबसे बड़ा ग्रह वृहस्पति, अपनी सौर परिक्रमा 12 वर्ष में पूरी करता है !
और इसी गणना पर हमारा कुंभ मेला लगता है,
जिस परिक्रमा का ज्ञान पश्चिम को सौ सवासौ साल पहले हुआ है उसका ज्ञान भारत को हजारों वर्षों पूर्व था !
क्या है जूना अखाड़ा, और इसका क्यों हैं सबसे ज्यादा महत्व ?
हिन्दू संतों के मूलत: श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा सहित 13 अखाड़े हैं !
इन अखाड़ों के संन्यासियों का महत्वपूर्ण काम है
ध्यान, तप, साधना और धर्मिक प्रवचन और लोगों को धर्म के मार्ग का रास्ता दिखाना !
शिव संन्यासी संप्रदाय के 7 अखाड़े इस प्रकार है !
1. श्री पंचायती -अखाड़ा -महानिर्वाणी-(दारागंज प्रयाग उत्तर प्रदेश)
2. श्री पंच अटल- अखाड़ा-चैक हनुमान, (वाराणसी उत्तर प्रदेश)
3. श्री पंचायती -अखाड़ा निरंजनी -(दारागंज प्रयाग उत्तर प्रदेश)
4. श्री तपोनिधि आनंद -अखाड़ा-पंचायती (त्रम्केश्वर नासिक महाराष्ट्र)
5. श्री पंचदशनाम जूना -अखाड़ा -बाबा हनुमान घाट (वाराणसी उत्तर प्रदेश)
6. श्री पंचदशनाम आवाहन- अखाड़ा-दशस्मेव घाट (वाराणसी उत्तर प्रदेश)
7. श्री पंचदशनाम पंच अग्नि- अखाड़ा-गिरीनगर (भवनाथ जूनागढ़ गुजरात)
जूना अखाड़ा
शिव संन्यासी संप्रदाय के 7 अखाड़ों में जूना अखाड़ा सबसे बड़ा है !
इस अखाड़े में लगभग 5 लाख नागा साधु और संन्यासी है !
इनमें से अधिकतर साधु नागा साधु हैं
इनसे अलग अलग क्षेत्र के अनुसार महंत होते हैं !
इस अखाड़े के वर्तमान में अध्यक्ष प्रेम गिरी महाराज हैं !
अखाड़े की चार मढ़ियां हैं जूना अखाड़े में व्यवस्था की एक खास प्रणाली
इन चारों मढ़ियों में महंत से लेकर अष्टकौशल महंत और कोतवाल तक नियुक्त किए जाते हैं !
यह अखाड़े का एक पूरा समाज है जहां साधुओं के 52 परिवारों के सभी बड़े सदस्यों की एक कमेटी बनती है !
Conclusion:
ऊपर हमने इस बारे में चर्चा की है की कुम्भ का स्नान का हमारे जीवन में क्या महत्व है !
और इस साल का कुम्भ का स्नान हरिद्वार में है ,
जहाँ पर गंगा का निवास है कुम्भ के मेले में सबसे ज्यादा हिस्सा साधु संतो का रहता है!
जो की अखाड़ों के रूप में है जैसे जूना अखाडा आदि !