ध्यान क्या है?
ध्यान का सबंद प्राय मन और मस्तिक से जोड़ा जाता है !
इस विचार के मानने वालो का कहना है
की जिस प्रकार तन के लिए भोजन और व्ययाम आदि जरूरी है
उसी प्रकार मन और मस्तिक के लिए ध्यान अनिवार्य है !
धार्मिक प्रवृति के व्यक्तियों के लिए ईश्वर प्राप्ति या मोक्ष का साधन है !
कुछ ध्यान को पूर्णत एक आद्यात्मिक क्रिया मानते है !
हर धर्म में चाहे वह आस्तिक हो अथवा नास्तिक ध्यान का महत्वपूर्ण स्थान है !
जैन और बोध दोनों धर्मो में ईश्वर का कोई स्थान
नहीं लेकिन ध्यान के क्षेत्र में ये दोनों ही आदित्य है !
आज जो लोग किसी भी धर्म विशेष में आस्था नहीं रखते अर्थात मत निरपेक्ष है
वे सबसे ज्यादा महत्व देते है तो ध्यान को ही ! ध्यान ही अनेक विधिया है !
ध्यान का सबंध न केवल मन मस्तिक्ष , ईश्वर , मोक्ष तथा अध्यात्म से है
अपितु इसका सीधा सबंध मनुष्य के तन या भौतिक शरीर से भी है !
इसके अतिरिक्त सृष्टि में जो भी स्थूल
जा सूक्ष्म पदार्थ दृष्टिगोचर होते है उन सभी से ध्यान का गहरा सबंध है !
जानिए कैसे तन और मन का समाधान है ध्यान
ध्यान का मन से क्या सबंध है ?
ध्यान को जानने के लिए मन को जानना जरुरी है !
और मन को जानना ही अत्यंत कठिन है !
बड़ी विचित्र है इसकी भूमिका ! मन ही सब समस्याओं का कारण है ,
सब रोगो की जड़ है और सभी समस्याओं और व्याधियों का उपचारक भी मन ही है !
मनुष्यो में बंधन और मोक्ष का कारण मन ही है !
यक्ष- प्रश्न है मन की गति
यक्ष ने युधिष्टर से पुछा था की सबसे तेज गति किस की होती है ?
युधिष्टर ने जवाब दिया था की सबसे तेज गति होती है मन की !
क्षण के सहस्त्रांश में यह दुनिया के एक कोने से दूसरे कोने में पहुंच जाता है !
सबंध तन और मन का
तन क्या है ?
तन भी मन का का ही एक स्वरूप है !
मन की स्थूल सृष्टि है तन !
इसको समझने के लिए शरीर का एक बार पून विश्लेषण करना होगा !
यदि हम शरीर का विभाजन करे तो मुख्या
रूप से तीन शरीर हमारे इस दृश्यमान शरीर में मौजूद है !
पहला है भौतिक शरीर , दूसरा है मानसिक शरीर तथा तीसरा है चेतना या आत्मा !
भौतिक शरीर स्थूल है तथा चेतना या आत्मा सूक्ष्म है !
इनके बीच उपस्थित है मानसिक शरीर या “मन” !
ये तीनो एक दूसरे से इस प्रकार जुड़े है और इसका कारण है मन की चंचलता !
ध्यान द्वारा मन की चंचलता को नियंत्रित करके
हम शरीर की अलग अलग पतो देखने का प्रयास कर सकते है !
और इसी में छिपा है तन के उपचार का रहस्य !
मन ही ब्रह्म और आंतरिक गतिया
मन की गति दो प्रकार की है – एक है ब्रह्म तथा दूसरी आंतरिक !
ब्रह्म गति वह है जो भौतिक पदार्थो की और अग्रसर होती है !
मनुष्य की भौतिक िष्चाओं का उदय मन की ब्रह्म गति के कारण ही होता है !
हमारा तन अर्थात स्थूल शरीर भी एक पदार्थ ही तो है !
जब मन इसके बारे में सोचता है तो यह प्रतिक्रिया करता है !
शरीर मन के अनुसार बदलता है ! जैसा मन की मर्जी वैसा भौतिक शरीर !
मन की दूसरी गति है आंतरिक गति !
इसका अर्थ है मन स्थूल शरीर की अपेक्षा सूक्ष्म शरीर की और अग्रसर हो रहा है !
यहाँ हम अपने मन के द्वारा अपनी चेतना से एकाकार होने की और अग्रसर होते है !
इसको कहते है मन द्वारा मन के स्तोत्र की यात्रा !
यह है स्वयं को जानने की यात्रा ! जब ये यात्रा सम्पन हो जाती है
तो बाहर की यात्रा की आवश्यकता ही नहीं रहती !
भौतिक जगत अस्तित्वहीन होने लगता है !