बैसाखी का त्यौहार : भारत त्योहारों का देश है। यहाँ अलग अलग धर्मो को मनाने वाले लोग रहते है।
हर धर्म में अपने अपने कुछ ख़ास त्यौहार है। होली , दीपावली , दशहरा , रक्षाबंदन जैसे कई त्यौहार मनाये जाते है।
इसी तरह चैत्र माह में पड़ने वाला बैसाखी का त्यौहार भी पूरे उत्साह से मनाया जाता है।
खेतों में रबी की फसल पक कर लेहलाती है। किसान मेहनत से आयी फसल को देख खुश होते है।
इस ख़ुशी का इजहार बैसाखी का त्यौहार मनाकर किया जाता है और कई गीत गाये जाते है ,
जैसे तेरी कनक दी राखी मुंड्या हुण मैं नहीं बेहंदी।
क्यों मनाते है बैसाखी का त्यौहार?
बैसाखी पर्व से पकी हुयी फसल को काटने की शुरुवात हो जाती है। आज ही के दिन नए पंजाबी वर्ष की शुरुवात भी होती है।
देश भर में 13 अप्रैल को बैसाखी का त्यौहार मनाया जाता है।
हिंदी कैलेंडर के अनुसार इस दिन हमारे सौर नववर्ष की शुरुवात के रूप में भी जाना जाता है।
इस दिन लोग अनाज की पूजा भी करते है
और फसल के कट कर घर आ जाने की ख़ुशी में भगवान और प्रकृति का धन्यवाद करते है।
देश के विभिन स्थानों पर इसे अलग अलग नामों से मनाया जाता है
जैसे असम में बिहू , बंगाल में नबा वर्षा , केरल में विशु के नाम से
लोग यह वर्ष मनाते है। बैसाखी वास्तव में सिख धर्म की स्थापना
और फसल पकने के प्रतीक के रूप में मनाई जाती है।
इस माह रबी की फसल पूरी तरह से पक कर तैयार हो जाती है और पकी फसल को काटने की शुरुवात भी हो जाती है।
ऐसे में किसान खरीफ की फसल पकने की ख़ुशी में बैसाखी मनाते है।
बैसाखी का त्यौहार का क्या महत्व है?
बैसाखी नवबर्ष के रूप में भी मनाई जाती है।
हिन्दू धर्म ग्रंथो के अनुसार मान्यता यह भी है की हजारो साल पहले मुनि भागीरथ कठोर तपस्या के बाद
देवी गंगा को धरती पर लाने में इसी दिन कामयाब हुए थे।
इसलिए इस दिन हिन्दू सम्प्र्दाय के लोग पारम्परिक रूप से गंगा स्नान करने को भी पवित्र मानते है
व् देवी गंगा की स्तुति करते है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान का अपना अलग महत्व है।
ज्योतिषीय दृष्टि से भी बैसाखी का बहुत ही शुभ व् मंगलकारी महत्व है क्युकी इस दिन आकाश में विशाखा नक्षत्र होता है।
ज्योतिषाचार्य मानते है की लोगों के राशिफल पर बैसाखी का सकारत्मक व् नकारत्मक प्रभाव पड़ता है।
इसे सौर नववर्ष भी कहा जाता है। मेष संक्रांति के दौरान पर्वतीय इलाको में भी मेले का आयोजन होता है
व् देवी पूजा करने का रिवाज है।
कैसे पड़ा बैसाखी नाम?
बैसाखी के समय आकाश में विशाखा नक्षत्र होता है। विशाखा नक्षत्र पूर्णिमा में होने के कारण
इस माह को बैसाखी कहते है। वैशाख माह के पहले दिन को बैसाखी कहा गया है। इस दिन
सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है , इसलिए इसे मेष संक्रांति भी कहा जाता है।
इसी दिन हुयी खालसा पंथ की स्थापना :
सिख धर्म में बैसाखी का इतिहास गुरु गोबिंद सिंह जी से जुड़ा है। गुरु गोबिंद सिंह जी ने धर्म को
मजबूत बनाने के लिए मुगलकाल में धर्म विरोधी घटनाओं का डट कर मुकाबला करने के लिए खालसा पंथ की शुरुवात की थी।
गुरु गोबिंद सिंह जी ने 13 अप्रैल , 1699 में युवाओं को देश के लिए अपना जीवन देने व् आगे आने जाने के लिए प्रेरित किया ,
हालांकि शुरू में कोई भी पुरुष आगे नहीं आया , लेकिन गुरु गोबिंद सिंह के बार बार अनुरोध व् प्रोत्साहन के बाद ,
पांच पुरुषों ने गुरु गोबिंद सिंह जी के विचारों में दिलचस्पी दिखाई।
गुरु गोबिंद सिंह जी ने उन्हें बगवा वस्त्र पहनने को दिए व् उन्हें ” पांच प्यारे ” की उपाधि दी गयी।
गुरु जी ने इस दिन ” खालसा पंथ ” (13 अप्रैल 1699) की शुरुवात की।
अनेकता में एकता का पर्व बैसाखी का त्यौहार :
भारत के अलग अलग राज्यों में यह त्यौहार अलग अलग नामों से प्रचलित है।
केरल में यह त्यौहार ” विशु ” के नाम कहलाता है।
उत्तराखंड में बिखौरी उत्सव के नाम पर।
बिहार में नया साल जुरशीतल के रूप में मनाया जाता है।
ओड़िसा में नए साल महा विषुव संक्रांति का प्रतीक है।
आसाम में बोहाग बिहू नव वर्ष की शुरुवात के रूप में मनाया जाता है।
बंगाली नए साल को हर वर्ष 14 अप्रैल को ” पहेला बैसाख ” के रूप में मनाते है।